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बोल तेरहवाँ
दश प्रकार का मिथ्यात्व
१. जीव को अजीव समझना ।
२. अजीव को जीव समझना । ३. धर्म को अधर्म समझना । ४. अधर्म को धर्म समझना । ५. साधु को असाधु समझना ।
६. असाधु को साधु समझना । ७. संसार - मार्ग को मोक्ष मार्ग समझना । ८. मोक्ष मार्ग को संसार मार्ग समझना । ६. मुक्त को अमुक्त समझना । १०. अमुक्त को मुक्त समझना ।
व्याख्या
जीवादि तत्त्वों से विपरीत श्रद्धानस्वरूप परिणाम को मिथ्यात्व कहा जाता है । मिथ्यात्व संसार का बीज है । जब तक आत्मा में मिथ्यात्व का शल्य है, तब तक वह शुद्ध, निर्मल और मल - मुक्त नहीं बन सकता ।
अतत्त्व में तत्त्वबुद्धि रखना, अधर्म में धर्मबुद्धि रखना, अदेव में देवबुद्धि रखना और अगुरु में गुरु बुद्धि रखना, मिथ्यात्व है ।
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