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जीव रूप तालाब में, संवर रूप डाट के द्वारा कर्म रूप जल को आने से रोकना, उसे संवर कहते हैं । संवर से आत्मा शुद्ध एवं निर्मल बनता है । क्योंकि संवर की साधना से कर्म मल आत्मा में नहीं आ पाता ।
हिंसा से विरति; अर्थात् निवृत्ति, असत्य से विरति, चोरी से विरति, अब्रह्मचर्य से विरति और परिग्रह से विरतिये पाँच व्रत रूप संवर हैं । संवर धर्म है । ___ पाँच इन्द्रियों का निग्रह करना, उनकी अशुभ प्रवृत्ति को रोकना, यह पाँच इन्द्रियों का निरोधरूप संवर है । निगृहीत इन्द्रियाँ संवर रूप हैं ।।
सम्यकत्व; अर्थात् जीव आदि नवतत्वों का यथार्थ श्रद्धान, विरति व्रत, अप्रमाद, अकषाय और अयोग ये पाँच संवर हैं । क्योंकि इनसे आत्मा की शुद्धि होती
मन का संयम, वचन का संयम और काय का संयम ये तीनों संवर रूप हैं ।
आस्रव में अशुभ योग को आश्रव और संवर में शुभ योग को संवर कहा है । परन्तु तत्त्व दृष्टि से देखा जाय, तो योगमात्र आस्रव है । भले ही वह शुभ हो या अशुभ । शुभ योग पुण्यास्रव है और अशुभ योग पापास्रव । यहाँ शुभयोग को जो संवर कहा है, वह अशुभ से निवृत्ति रूप है । अतः शुभ की अशुभत्त्व से निवृत्त रूप शुद्धांश में लक्षणा है ।
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