Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 62
________________ व्याख्या कर्म-वर्गणा का आत्मा पर से एक देश से दूर हो जाना, निर्जरा है । जीव रूप वस्त्र को कर्म रूप मैल लगा हुआ है । ज्ञान रूप जल और तप रूप साबुन से उसको शुद्ध किया जाता है । यह निर्जरा तत्त्व को समझने के लिए एक रूपक है । निर्जरा दो प्रकार की है—सकाम और अकाम । विवेक और ज्ञान के साथ संवर-पूर्वक होने वाली निर्जरा सकाम है और बिना विवेक के, बिना संयम के जो कष्ट सहन किया जाता है, वह अकाम निर्जरा है । यहाँ निर्जरा तत्त्व में सकाम निर्जरा का ग्रहण है । यह निर्जरा ही आत्मशुद्धि का हेतु है ।। बद्ध कर्मों का क्षय तप से होता है । अतः निर्जरा की व्याख्या करते हुए प्रस्तुत बोल में अनशन आदि छह प्रकार का बाह्य रूप तप और प्रायश्चित्त आदि छह प्रकार का आभ्यन्तर तप बताया गया है । यह तप कर्म की निर्जरा का हेतु है, अतः कारण में कार्य का उपचार करने से यहाँ तप को निर्जरा कहा गया है । आभ्यन्तर तप साक्षात् निर्जरा का हेतु है और बाह्य तप परम्परा से हेतु है । कर्म · परमाणुओं का आत्मा से एक देश से दूर हो जाना निर्जरा है और सर्वथा कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है । कर्म-बन्धन से देश-मुक्ति निर्जरा है और सर्व-मुक्ति मोक्ष है । (५७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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