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प्रमाद (विषय, विकथा, आलस्य) कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) और मन आदि का योग ये पाँचों आस्रव रूप हैं । ___ मन, वचन और काय की अशुभ तथा शुभ प्रवृत्ति आस्रव रूप हैं । कर्म बन्धन का कारण है ।।
अशुभ प्रवृत्ति पाप का आस्रव है और शुभ प्रवृत्ति पुण्य का आस्रव है । यहाँ मूल पाठ में अशुभ योग को जो आस्रव कहा है, वह निश्चय दृष्टि का कथन है । निश्चय दृष्टि से शुभ यानी पुण्य भी बन्धन रूप होने से तत्त्वतः अशुभ माना है । __रजोहरण, पात्र आदि भोण्डोपकरण और कृश तृण, सूचि-सुई आदि अन्य कोई भी वस्तु यदि अविवेक से ली जाती है और अविवेक से रखी जाती है, तो यह भी आस्रव है ।
इन बीस कारणों से आत्मा कर्मों का संचय करता है, अतः ये आस्रव हैं । आस्रव संसार का कारण है । इससे संसार की वृद्धि होती है ।
संवर के बीस भेद
पाँच व्रत १. प्राणतिपात विरमण २. मृषावाद विरमण ३. अदत्तादान विरमण ४. अब्रह्मचर्य विरमण ५. परिग्रह विरमण
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