Book Title: Pacchis Bol
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ १. मनः प्रवृत्ति ३. काय प्रवृत्ति तीन योग २. वचन प्रवृत्ति दो अयतना १. भाण्डोपकरण अयतना से लेना, रखना । २. सूचि कुशाग्र मात्र, अयतना से लेना, रखना । व्याख्या जिन कारणों के द्वारा आत्मा में कर्म आता है, वे कारण आस्रव कहलाते हैं । जीव रूप तालाब में, शुभ - अशुभ रूप जल, राग द्वेष आदि आस्रव द्वार रूप नाली से आता रहता है । आस्रव से आत्मा मलिन बनता है, क्योंकि आस्रव से कर्मों का निरंतर संचय होता रहता है । हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना, व्यभिचार करना और परिग्रह का संचय करना—ये पाँच अव्रत रूप आस्रव हैं । Jain Education International पाँच इन्द्रियों को यदि वश में नहीं रखा जाता, उनका निग्रह नहीं किया जाता, उन पर संयम का अंकुश नहीं रखा जाता, यदि वे खुली छोड़ दी जाती हैं, तो कर्मबन्ध में निमित्त होने से आस्रव रूप है । मिथ्यात्व; अर्थात् विपरीत श्रद्धान, अविरति, (असंयम), ( ५२ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102