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पानी, स्थान, शय्या और वस्त्र देने से शरीर से किसी की सेवा करने से, मधुर एवं हितकर वाणी बोलने से, शुभ विचारों का चिन्तन करने से और किसी पूज्य पुरुष को वन्दन नमस्कार करने से ।
पुण्य मनुष्यगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, शुभ वर्ण, शुभ गन्ध, शुभ रस, शुभ स्पर्श, सौभाग्य, सुस्वर, आदेय, यश आदि ४२ प्रकार से भोगा जाता है । पुण्य को बाँधते समय दुःख और भोगते समय सुख मिलता है । आत्म-विकास में पुण्य कथंचित् निमित्त है । अतः उपादेय है, परन्तु साधना की उच्च अवस्था में पुण्य भी हेय
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पाप तत्त्व के अठारह भेद
१. प्राणातिपात
२. मृषावाद
३. अदत्तादान
४. मैथुन ५. परिग्रह
६. क्रोध
७. मान
८. माया
६. लोभ
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(हिंसा)
(झूठ )
(चोरी)
( व्यभिचार)
( ममता भाव )
(गुस्सा ) (अहंकार)
( छल-प्रपंच) ( लालच - तृष्णा)
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