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बोल चौदहवाँ
नव तत्त्व के ११५ भेद
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नव तत्त्व १. जीव तत्त्व
२. अजीव तत्त्व ३. पुण्य तत्त्व
४. पाप तत्त्व ५. आस्रव तत्त्व
६. संवर तत्त्व ७. निर्जरा तत्त्व ८. बन्ध तत्त्व ६. मोक्ष तत्त्व
( व्याख्या यथार्थ सद् वस्तु को तत्त्व कहते हैं । ये नव मूल तत्त्व हैं । जीव चेतन है । अजीव अचेतन; अर्थात् जड़ है । पुण्य सुख देने वाला है । पाप दुःख देने वाला है । आस्रव, शुभ और अशुभ कर्मों के आने का हेतु राग द्वेष आदि का द्वार है । संवर, आस्रव का निरोध है । वह संयम है, वीतराग भाव है । तप के द्वारा एक देश से कर्मों का आत्मा से अलग होना निर्जरा है । बन्ध, आत्मा और कर्मपुद्गल का परस्पर सम्बन्ध है । मोक्ष, सम्पूर्ण कर्मों का क्षय है ।
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| जीव तत्त्व के चौदह भेद |
१. सूक्ष्म एकेन्द्रिय के दो भेद, पर्याप्त और अपर्याप्त
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