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और काय का व्यापार है । सयोगी; अर्थात् योग युव है, जो केवली, वह सयोगी केवली, उसका गुणस्था सयोगी केवली गुणस्थान, इसमें आत्मा सर्वज्ञ और सर्वदा हो जाता है ।
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अयोगी केवली गुणस्थान – अयोगी, योग रहित योग रहित है, केवली जिसमें वह अयोगी केवली, उसक गुणस्थान, अयोगी केवली गुणस्थान । इसमें आत्मा शेलेश अर्थात् मेरुपर्वत के समान निष्कम्प हो जाता है । इस बाद आत्मा गुणस्थानातीत होकर सदा के लिए सर्वथ शुद्ध, मुक्त परमात्मा बन जाता है ।
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