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क्रिया का ज्ञान होना–साकारोपयोग है । पदार्थों के अस्तित्व या सत्ता रूप सामान्य बोध को दर्शन या निराकारोपयोग कहते हैं ।
जैन दर्शन में वस्तु सामान्य-विशेषात्मक मानी है । जब चेतना वस्तु के विशेष धर्म को मुख्य रूप में और उसके सामान्य धर्म को गौण रूप में ग्रहण करती है, तो चेतना के उस व्यापार को ज्ञानोपयोग कहा जाता है । परन्तु जब चेतना किसी भी वस्तु के सामान्य धर्म को मुख्य रूप में और उसके विशेष धर्म को गौण रूप में ग्रहण करती है, तब उसे दर्शनोपयोग कहते हैं । ज्ञान साकार; अर्थात् विशिष्ट बोध रूप होता है और दर्शन निराकार; अर्थात् अविशिष्ट-सामान्य बोध रूप होता
मति ज्ञान–इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाला रूपी पदार्थों का ज्ञान । मन से अरूपी पदार्थों का भी परोक्ष ज्ञान किया जा सकता है ।
श्रुति ज्ञान-जो ज्ञान श्रुतानुसारी है । जिससे शब्द और अर्थ का सम्बन्ध माना जाता है । जो मति ज्ञान के बाद होता है। ___ मति और श्रुत का परस्पर सम्बन्ध है। दोनों में कार्य-कारण भाव है । मति ज्ञान कारण है और श्रुत मान कार्य है। दोनों ज्ञान निमित्तावलम्बी होने से परोक्ष
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