________________
शास्त्र में, जीवों के मुख्य रूप से दो भेद हैं स्थावर और त्रस प्रथम के पाँच काय स्थावर हैं । स्थावर का स्थूल अर्थ है स्थिर रहने वाले, एक ही स्थान पर स्थित । जैसे वृक्ष आदि । जो जीव, हलन-चलन की क्रिया करते हैं, वे त्रस हैं । द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव त्रस हैं । सिद्धान्तानुसार स्थावर नाम कर्म का उदय जिनका हो, वे जीव स्थावर हैं और जिनको अस नाम कर्म का उदय हो, वे जीव त्रस हैं । स्थावर एवं त्रस को मिलाकर जीवों के छह भेद हो जाते हैं । आगम में इसी को षड्जीवनिकाय कहा है ।
पृथ्वी काय-मिट्टी, मुरड़, हिंगुल, हरताल, हीरा, पन्ना, सोना, चाँदी आदि सब पृथ्वीकायिक जीव हैं । मिट्टी के एक कण में भी असंख्य पृथक्-पृथक् जीव होते हैं । पृथ्वीकायिक जीवों को स्व-पर शस्त्र न लगे, तब तक पृथ्वी सचित्त है । वही शस्त्र लगने पर अचित्त हो जाती हैं । यही क्रम जल, तेजस्, वायु और वनस्पति काय के सम्बन्ध में भी हैं। ___अप् काय-वर्षा का जल, ओस का जल, गढ़े का पानी, कुआँ-बावड़ी का पानी, ताल, झील व नदी का पानी आदि सब अपकायिक जीव हैं ।
तेजस्काय-भाड़ की अग्नि, झाल की अग्नि, बाँस की अग्नि, उल्का-पात आदि सब तेजस्कायिक जीव हैं।
(१०)
-
-
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org