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व्यापक है । सामान्य रूप में योग का अर्थ ध्यान तथा समाधि किया जाता है । 'योग-सूत्र' में चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है ।
परन्तु जैन शास्त्रानुसार, प्रस्तुत में योग शब्द का विशेष अर्थ लिया गया है । यहाँ पर मन, वचन और काय के व्यापार को योग कहा गया है । मन, वचन और काय की वर्गणा के पुद्गलों की सहायता से, आत्म-प्रदेशों में होने वाले परिस्पन्द को Vibration कम्पन व हलन-चलन को योग कहा गया है ।
मुख्य रूप में मन, वचन और काय ये योग के तीन भेद हैं । विस्तार की अपेक्षा से उसी के पन्द्रह भेद कर दिये गये हैं ।
मन दो प्रकार का है-भाव मन और द्रव्य मन । भाव मन को Subjective mind और द्रव्य मन को Objective mind कहते हैं । द्रव्य मन का सम्बन्ध Brain से है, और भाव मन का सम्बन्ध आत्मा से, क्योंकि वह ज्ञान रूप होता है । __मन की प्रवृत्ति चार ही प्रकार की हो सकती है कभी सत्य, कभी असत्य, कभी सत्यासत्य (मिश्र) और कभी लोक-व्यवहार रूप ।
वचन का अर्थ है-भाषा । वह भी चार ही प्रकार की हो सकती है-कभी सत्य, कभी असत्य, कभी सत्यासत्य (मित्र) और कभी लोक-व्यवहार रूप ।
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