Book Title: Nayopdesh Part 02 Tarangini Tarni
Author(s): Yashovijay Gani, Lavanyasuri
Publisher: Vijaylavanyasuri Gyanmandir
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________________ नयामृततरङ्गिणी-परजिवीतरनिया समालतो नयोपदेशः। 15 364 , विषयः पत्र-पहिः 196 सम्मतिवृत्तौ मीमांसकमतस्याशुद्ध द्रव्यार्थिकव्यवहारनयप्रकृतिकत्वकथन.. स्योपपादनं, वस्तुतो नयसंयोगजत्व मेव तस्येति भावितम् / 359 9 197 शब्दादीनां नयसंयोगजत्वे कथं न स्वसमयतुल्यत्वमिति प्रश्नप्रतिविधान - वचस्तुल्यसंख्यकत्वं नयानाम् / . 360 5 198 स्याद्वादनिरपेक्षैर्नयस्तावत्सङ्ख्यका परा गमा भवन्तीत्येतस्योपदर्शकं द्वाविंश. त्युत्तरशततमपद्यं, तत्र दर्शने नय. योजनोपयुज्य आयेति दर्शितम् / 361 3 199 उकार्थे “जावइया वयणपहा" इति सम्मतिगाथासंबादः। 20. आपातज्ञानस्य॑ स्वसमय-परसमय विपर्यासफलत्वतो वस्तुस्थितिविचारे जे पज्जवेसु णिदिखेति दैगम्बरवचन. स्याज्ञानविजृम्भितत्वमुपपादितम् / 361 11 2.1 जिनभद्र-सिरसेनप्रभृतीनां स्वस्व तात्पर्यविश्वविषये सूत्रे परतीर्षिकवस्तुवकव्यताप्रतिबन्धप्रतिपादनमपि प्रावनिकत्वक्षतिभयादन्यथोपवर्ण्य परस्परविरोधपरिहाराय प्रतिविधानं स्वकृतज्ञानबिन्दुगतं ज्ञेयमित्युपदिष्टम् / ज्ञामबिन्दुमतं प्राचा वाचामित्यादि पद्यषट्कमुक्लिखितम् / 202 नयोत्पादितेषु दर्शनेषु नास्त्यात्म त्यादीनां षण्णां चार्वाकादिदर्शनानां मिथ्यात्वस्थानकत्वप्रतिपादकं त्रयो. विंशत्युत्तरशततमपद्यम् / 363 2 203 अस्त्यात्मेत्यादीनां षण्मां वैशेषिकादि दर्शनानां सम्यक्त्वस्थानकत्वं मार्गत्यागतो मिथ्यात्वस्थानकत्वं मार्गप्रवेशतः सम्मत्वस्थानकत्वमित्युपदर्शकं चतु विशालतरशततमपद्यम् / 363 9 204 अस्त्यात्मवादीनां षण्णां सम्यक्त्व हः विषयः पत्र-पति स्थानकत्वे " अस्थि जिओ" इत्यादिगाथासंवादः। 2.5 लतादितश्चार्वाकादिपक्षनिरासोऽवसेय इत्युपदेशः / 206 अकस्माद् भवतीत्यनुपायवादमधिकृत्य विचारः। 364 1 207 अकस्माद् भवतीत्यत्र पराभिमततया विकल्पितानां हेत्वभावे भवन-भवनाभाव-स्वहेतुकभवना-अलीकहेतुकभवनस्वभावहेतुकभवनानां पञ्चानां प्रकाराणां निरासे नियतावधिकत्वस्य हेतुतयो पदर्शनम् / 208 तत्र-उदयनाचार्यस्य हेतुभूतिनिषेधो नेत्यादिवचनसंवादः / 209 आकाशत्वादीनां क्वाचित्कत्ववत् कादाचित्कत्वमपि न सहेतुकत्वस्य साधकमिति प्रश्नस्य प्रतिविधानम् 365 1 कादाचित्कत्वस्य हेतुं विनैव घटादिस्वभावत्वमस्त्विति प्रश्नस्य समा धानम् / 211 एतद्विषये कुसुमाजलावुदयनाचार्योक्ति रुल्लिखिता। 212 सन्त्ववधयो न त्वक्षन्त इति प्रश्न प्रतिविधानम् / 213 कार्यकारणभावस्य प्राहकप्रमाणाभावाद सिद्धिरिति परमतप्रश्नः। 214 परोपदर्शितव्यभिचारशङ्काविधूननेन कार्यकारणभावप्राहकप्रमाणव्यवस्थाप नेन परप्रश्नप्रतिविधानम्। 367 2 215 अनन्यथासिद्धनियतपूर्ववर्तित्वलक्षण कारणत्वस्य वहन्यादौ व्यवस्थापनम् / 367 5 216 कुसुमाञ्जस्यादावनुमानागमप्रामाण्यस्य व्यवस्थापितत्वम् / 367 8 217 कुसुमाजलावनुमानप्रामाण्यव्यवस्था पकः " शङ्का चेदनुमानस्यास्त्येव" - इत्यादिप्रन्थोऽत्रोद्यङ्कितः / 1. /
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