Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 00 SrNo 22
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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महावीरवाणी (श्रीदशवैकालिक सूत्रात् सङ्कलिता)
धम्मो मंगलमुक्किळं ॥१-१॥ (सं. छाया) [धर्मो मङ्गलमुत्कृष्टम्]
साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति बुच्चइ ॥२-३॥
[(यः) स्वाधीनान् त्यजति भोगान् स खलु त्यागीत्युच्यते ।। छिंदाहि दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥२-५॥ [छिन्द्धि द्वेषं विनयेः रागम्, एवं सुखी भविष्यसि संसारे ]
वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥२-७॥ [वान्तमिच्छसि आपातुं श्रेयस्तव मरणं भवेत् ]
(वान्तान् भोगान् पुनः स्वीकर्तुमिच्छति यः तस्य कृते मरणमेव श्रेयस्करम् ॥ सवभूयप्पभूयस्स सम्मं भूयाइ पासओ। पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्म न बंधई ॥४-९॥ [सर्वभूतात्मभूतस्य सम्यग् भूतानि पश्यतः । पिहिताश्रवस्य दान्तस्य पापं कर्म न बध्यते ॥]
पढमं नाणं तओ दया ॥४-१०॥
[प्रथमं ज्ञानं ततो दया ] जं छेयं तं समायरे ॥४-११॥ [यत् श्रेयस्तत् समाचरेत् ।
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