Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 00 SrNo 22
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 99
________________ मेघो । ॥१३२॥ । काले नेव वरिससि तहा अकाले रेसि मा वुटिं। भो मेघ ! किं न दत्तो सक्केणेसि पि तुह विवेगगुणो ? महुरे महुरो कडुए कडुओ खारो तहा य खारे तं । होसि जलय ! केणेसो नणु सिक्खविओ तुह विवेगो ? तुह मेघ ! का कुसलया फुलावेंतस्स सयलवणराई। जड़ न करीरं सुक् वियसावसि तुज्झ सम्मुहम्मि ठियं ॥१३३॥ ॥१३४॥ सूरो किंसुअमुहसरिसारुणवयणे सूरे समुग्गए वि अहो । जड़ नलिणं मलिणिज्जइ तो नियई कं सरणमेउ ? રૂપો कयग्घया ૩૬ો मा कालिदास ! लज्जसु नियमासयछेयणं सरिय हियये । तुह चेट्टा गयलज्जं अज्जवि अस्सिज्जई बुहेहिं जं रे रे कयग्घया ! तं केरिसलोयंपिणत्तमुव्वहसि ?। झंखंति पुत्तदारा सीसा सयणा य जेण तुमं ॥१३७॥ | | पक्खिगणाण उवेक्वं समिक्ख कासार ! सार मा अंसू । एसेव लोगनीई 'जं रित्ता णेव दट्ठव्वा' રૂ૮ 7 भो सज्जण ! मा सोयसु नियवुच्छं पेछ कडुफलं, जेण । सज्जणों अंबब्भमेण निंबो नियगेहे वाविओ तुमए શરૂછો पिवीलिया - अहमेगया समग्गं सक्करखंडं नयामि नियनिलए। इय चिंतिरी पिवीली गसिया कालेण, अच्छरिअं ॥१४ ॥ विती । जड़ गचमुव्वहसि इय 'जं धारेमीह तं रेमि' विहे ! । तो कंटगकिण्णे कुरु बब्बुलरुक्खे महुफलं भो ! ॥१४१ पिवीलिया - पडिवक्खहत्थिकुंभत्थलाण विष्फोडणे कयंतो जो। सो मयमत्तो वि गओ पिवीलियाणं कह रंको ? ॥१४२॥ ८८ ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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