Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 00 SrNo 22
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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पहा
कामं तं दिग्घो पह ! रायपहनामधेअजुग्गो अ। तह वि पहिआण विरहे निरत्ययं तावगं सयलं
॥१२४॥
KYAKAR
दुज्जणा
भो दुज्जणा ! जहिच्छं तोडंतु घडंतु वा जगं, जेण। बंभो सज्जणकज्जे गहियनिवित्ती गओ सगिहं
॥१२५॥
पहिओ
कासारा किंसारा कूवा अंधा नईउ सुक्कजला। मले पहिआणं किल अतित्तिकम्मं उदयपत्तं
॥१२६॥
। पत्थरकए लहुनगा फोडिज्जंतीह जलकए धरणी। मणूसा
गहणवणा कट्ठकए रक्खसकिच्चं हहा ! मणूसाणं
॥१२७॥
कडुयत्तणं पि सुगुणो पसंसणिज्जो कयाइ दीसेइ। कारल्लयकडुयरसो जं महुमेहं विणासेड़
૨૮
। भग्गं सुन्नट्ठाणं निरिक्खिउं हससु मा अरे मूढ ! । सुन्नट्टाणं
जाणासि ताव किं नो 'जो जायइ जाइ सो' इमं नियमं ? ॥१२९॥ (भो मेघ ! सक्कदत्तो, कत्थ पलत्तो तुह विवेगो ? ॥)
व
पुट्विं वणवासीणं पाणीणं संखओ पयविहिओ। इण्हि पुण विनाणं मणुया य करेंति तं कम्म
શરૂ
| समदिट्ठी
का भयवं ! जत्थ न पूया न पूयगो दंसगो व को नत्थि ।
तत्थवि तं उवविसिओ अहो ! महंताण समदिट्ठी
॥१३१॥
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