Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 00 SrNo 22
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
हंसब्भमेण बगुलो निमंतिओ सरवरेण कइया वि । तप्पावरस परिणइं अज्ज वि अणुहोति जलयरा सब्वे
રો .
- सायर ! सिणिद्धया तुह अन्ना अन्ला गभीरया चाऽवि । सायरो जं लहुयं पि न पोयं अंके धरिऊण गउरवं देसि
રરો सायर ! सरियानियरो महुरं नीरं निरंतरं खिवइ । तुह उयरम्मि, तहाचि हु वारत्तं वहसि तं, महच्छरिअं! ॥२३॥ खारो उयही, तुब्भे मिट्ठजला, तहवि किं नियविलोवो । कीरइ तत्थ ? नईओ ! नणु सब्बरसो य सोऽम्ह सवस्सं ॥२४॥ न सहइ वियप्पजालं समप्पणं जत्थ कीरए तत्थ । इइ सिक्वविउं मन्ने वहइ नई खार-उयहिम्मि
॥२५॥ गुहिरो अगाहमज्झो सायर ! भण्णिज्जसे विसालो य। णं अस्सियजणहणणं कहमिह सहसे तहवि ताय !? ॥२६॥ भो रयणायर ! निलओ रयणाणं तमसि संसुयं एवं । किमिइ अहुणा तडम्मि खु मट्टियपुंजं समुग्गिरसि कालं ? ॥२७॥
दापोअं अत्थि व नत्थि व अणुसरड़ य वा न वा तुह पयासं ।
तहवि सकिच्चमविरयं करोसि तं दीवदंड ! धन्नोऽसि
॥२८॥
|
नई
सुक्का नई कहं तं ? एवं मा पुच्छ, संगदोसोऽयं । नणु सुक्कहियय-लोया मज्झ तडे ताय ! निवसंति !
| कूवो
मा रडसु सुक्ककूवा ! मन्नतो जीवियं नियं विहलं । रसहीणम्मि जणम्मी भारो च्चिय वारिसंवहणं
७७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106