Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 10
________________ मूर्ति का जो विशेष सत्कार किया जाता है उसीका नाम पूजना है या उसीको पूजा कहते हैं। पूजा शब्द के पर्याय अमरसिंह ने लिखा है"पूजा नमस्याऽपचितिः सपर्याऽहिणाः समाः" n (अमरकोष) अर्थात्-पूजा, नमस्या, अपचिति, सपा, अर्चा और अहणा ये छः नाम पूजा के हैं। अब मूर्ति और पूजा इन दोनों पदों को इकट्ठा करने से 'मूर्ति-पूजा' यह एक संयुक्त पद हुआ इसे समासान्त पद कडते हैं। यहां षष्ठी तत्पुरुष समास है जैले-मूर्ति की पूजा या मूत्तियों की पूजा= मूर्ति पूजा। सारांश यह निकला कि उच्चसुख के लिये यानी परम शान्ति के लिये अथवा परमसुख के लिये या उच्चलोक के लिये जिसकी सेवा की जाय या जिसका प्राथय लिया जाय उसे विश्ववन्द्य वीतराग ईश्वर की मूर्ति कहते हैं, उसी मूर्ति को श्रद्धा सहित पवित्र मन वाणी के द्वारा फूल-फल धूप-दीप-जल-अक्षत-नैवेद्य आदि से विशेष सत्कार करने का नाम ही मूर्ति पूजा" है। अव श्रद्धालु मूर्तिपूजक बुद्धिमान् मूर्तिपूजा शब्द को किन अर्थों में मानते हैं, वे सब के सब ऊपर बतलाये हुये भूर्ति-पूजा शब्द के अर्थो से साफ साफ प्रकट हैं। हां, यह एक दूसरी बात है कि कोई विपरीत विचार वाले मूर्ति-पूजा विद्वती महाशय स्वमत सिद्ध करने के लिये बलात्कार खैचातानी करके मूर्ति-पूजा शब्द के सुप्रसिद्ध लक्ष्यार्थ को अनर्थ कर डालें, ऐसे यक्तियों के लिये यह कहावत अत्यन्त प्रसिद्ध है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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