Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ (४८) भावार्थ:-नीलकण्ठ, सहस्रनेत्र से संपूर्ण जगत् के देखने वाले इन्द्ररूप वा विराट रूप, सेचन में समर्थ पय॑न्य (मेघ) रूप वा वरुणरूप रुद्र के लिये नमस्कार हो। और इस रुद्र देवता के जो अनुचर देवता है उनको भी मैं नमस्कार करता हूँ। यहां भी सहस्र नेत्रों का होना और नीलग्रीवा होना ईश्वर की साकारता को ही सिद्ध करता है। और भी सुनिये:"प्रमुञ्च धन्धनस्त्वमुभयोरायोाम । याश्च ते हस्त इषवः पराता भगवो वप" | (यजुर्वेद, अध्याय १६ मंत्र) मावार्थ:-हे षडेश्वर्य सम्पन्न ! भगवन् ! आप अपने धनुष की दोनों कोरियों में स्थित ज्या (धनुष की डोरी) को दूर करो अर्थात् उतार लो और आपके हाथ में जो बाण है उनको भी दूर त्याग दो और हमारे लिये सौम्य स्वरूप हो जाओ। इससे भी ईश्वर की साकारता सिद्ध होती है, क्योंकि शरीर के बिना हाथ, पैर आदि का होना असम्भ है। ... और भी सुनिये: "नमः कपर्दिने च" (यजु० अध्या० १६ मंत्र २६) भावार्थ:-कपर्दी अर्थात् जटाजूट धारी ईश्वर को नमस्कार हो। यहाँ भी ईश्वर की साकारता कही गई है, क्योंकि शिर के विना जटायें नहीं हो सकती। और भी श्रवण कीजिये: Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94