Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 77
________________ (७३) दादाजी-पत्थर का चुम्बन करना और प्रदक्षिणा करना फिर यहां जाकर शिर झुकाना मूर्ति पूजा नहीं तो और क्या है ? और आप जो खुदा के मकान को इस तरह कदर (श्रादर ) करते। हैं, तो खुदा की मूर्ति का कदर क्यों नहीं करते और उसकी मूर्ति को क्यों नहीं मानते ? भला शोचिये तो मौलवी साहिब, कि यह जो ताज़िये निकाले जाने हैं सो बुत नहीं तो और क्या है ? और श्राप लोग काबा की (पश्चिम की) ओर मुंह करके नमाज पढ़ते हैं, सो भी तो एक तरह की मूर्ति पूजा ही है। मौलवी- काबा तो खुदा का घर है, इसलिये हम उधर ही मुंह करके नमाज पढते हैं। दादाजी-क्या और जगह खुदा से खाली है ? जब खाली है तब आपका यह कहना कि खुदा सभी जगह है बेकार होगा। मौलवी-काषा की तरफ हम मुह को इसलिये करते हैं कि काबा खुदा का घर है. उस तरफ मुह करने से दिन खुश होता है और स्थिर रहता है। दादाजी-कावा तो आंख के बाहर की एक चीज है, जो दूर से दिखाई नहीं देती, खुदा की मूर्ति तो सामने होने से अच्छी तरह दिखलाई देने से ध्यान भी अधिक लगेगा और मन स्थिर होगा। आप लोग जो नमाज पढते हैं-सो यदि किसी ऐसी जगह पढा जाय जिस जगह आदमी के आगे से जाने का मुमकीन हो, तो श्राप लोग उसके वीच में लोटा या कपड़ा कोई चीज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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