Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 88
________________ (a=) स्थापना रूप जिनेश्वर को स्त्री स्पर्श कर सकती है इस में कुछ भी दोष नहीं, 'ज्ञाताजी सूत्र' में लिखा है कि सती द्रौपदी ने जिन मन्दिर में जाकर जिन प्रतिमा पूजी है और जिनेश्वर से मोक्ष मांगी है । पन्थी - महात्मन् ! प्रतिमा हिलती नहीं, चलती नहीं, उठती नहीं, बैठती नहीं और भागती नहीं तो कपाट क्यों बन्द करते और ताले क्यों लगाते ? यदि प्रतिमा भगवान् है तो भगवान् को कैद क्यों करते हैं ? दादाजी - सुनिये महाशयजी, प्रतिमा को कैद नहीं करते, बल्कि चोर और निन्दकों से बचाने के लिये उसे कपाट और ताला लगाते हैं और जैसे श्रापके "भगवान् की वाणी" हिलती नहीं, चलती नहीं, उठती नहीं, बैठती नहीं और भागती नहीं है मगर फिर भी आप उसे कसकर कपड़े और मोटे डोरों से बान्धते हैं उसी तरह प्रतिमा में भी समझे । पन्थी - महाराज, प्रतिमा के आगे नगारे आदि बजाना और नृत्य करना क्या अच्छा है ? दादाजी - हांजी, बेशक अच्छा है, तीर्थंकारों के आगे समयसरण में देवों ने अपनी भक्ति के दिखाने के लिये कुंदुभी बजाई, उसकी आवाज सुनकर माता मरुदेवी नित्य भावना को भावकर केवलत्व को पाया है, भक्ति में पधारी हैं और गृहस्थ के चिन्ह को ही धारण करती हुई मुक्ति को गई है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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