Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 87
________________ (३) उन्हीं की प्रतिमा है, और पाषाण कर सम्बन्ध जर्व तक खान से रहता है तभी तक पाषाण एकेन्द्रिय कहलाता, खान से निकलने के बाद अनेन्द्रिय हो जाता, जैसे खान से खोदी हुई तुरत की मिट्टी स. चित्त होती है और बाद में सूखने से अचित्त हो जाती है। पंथी-महाराज, प्रतिमा को पूजने से काय के जीवों की हिंसा होती है और हिंसा में धर्म कहाँ ? दादाजी-सुनिये साहब, “ राय प्रश्रेणी सूत्र" में तथा 'महा. कल्प सूत्र ' में जिन प्रतिमा को जल, चन्दन पुष्पादि से पूजने के लिये स्वयं भगवान महावीर ने श्राक्षा फरमाई है, आशा रूप धर्म को करने से हिंसा नहीं लगती, और 'प्रश्न व्याकरण सूत्र' में दया के ६० नामों में यक्ष और पूजा का भी नाम आया है, अतः प्रतिमा पूजा में धर्म ही है। पंथी-महात्मन् ! प्रतिमा में पंच महाव्रत नहीं है, यदि है तो 'उसे स्त्री किस तरह पूजा कर सकती और स्पर्श कर सकती है ? यदि स्पर्श कर सकती है तो फिर प्रतिमा में पंच महाव्रत कहां रहा ? दादाजी-सुनोजी 'गय पसेणी' सूत्र में सूर्याभदेष के अधि कार में "जिण पडिमा जिणुस्सेह" ऐसा पाठ है, भाषार्थ यह हुआ कि:-जिन प्रतिमा जिनेश्वर भगवान की तरह है, अतः जिन प्रतिमा में पंच महाब्रत है। और जिन प्रतिमा तो स्थापनारूप जिनेश्वर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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