Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 93
________________ (मह) पूर्वणीउमामो मामाणिज्झामो कस्योग मंगल देवयं चझ्यं पन्मुशासखिभानो तएणणं देवाणुपियासं पुन्छ करगिज्झतं पसारा देवासुप्पियाणे पुषिसेयं तपणखे देवासुप्पिया पुदि पच्चाविहिवार सुहार खमार खिस्सलाए मणुगामि पत्ताए भवस्सन्ति। भावार्थ:-यहां "जिण पडिमाणं जिणुस्सेह" अर्थात् जिनप्रतिमा शिनेश्वर के समान है, सामामिक देवों ने सूर्याभदेव को जिन प्रतिमा को पूजने के लिए कहां और कहा कि जिम प्रतिमा की पूजा कल्याण, मंगल करने वाली है। पूर्व के देव, मुनि सत्पुरुषों में किया और पीछे के भी हानी, च्यांनी मुनि खन्त साधु लोग जिन प्रतिमा की पूजा को करेंगे । यही बात भगवान् महावीर ने भी भामियोगिको से कही है, जब भगवान महावीर का प्रामियोगिको ने वन्दना को तब उन्हें मंगवान ने कहा. जैसे-'सवपसिसी' सूत्र में कही है ........... "सूरियाभोवस्त आमियोंगिया देवा देवाणु. दिपमा हामो नमं सामो सक्कारेमो समाणेनो कल्याणं मंगलं देवयं चेदयं पज्जुवासामो देवाई समणे भगवं महावीरे ते देवे एवं वपासी पोराणमेवं देवा जायमेवं देवा किश्चमेवं देवा करणिज्जमेवं देवा प्राचिरणमेव देवा प्रकणुण्णायमेवं । भावार्थ:-जिप समय प्रामियोगिकों में भगवान महावीर को 'देवयं चेयं' कहकर वन्दना की, नव भगवान ने उनसे कहा कि हे देवों! यह तुम्हारी पूना प्राचीन है, यह भावार है, यह कृत्य है, यह करणीय है, यह पूर्व दोनों ने आवरण किया है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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