________________ (8.) इस तरह सभी तीर्थंकरों ने आक्षा दी है और मेरीभी प्राशा है। भव कहिये ज्ञानचन्दजी, मामियोगिकों ने "देव चेययंग याने जिन प्रतिमा की उपमा देकर भगवान की बन्दना की और भगवान महावीर ने उसे अच्छा कहा, अंगीकार किया और माना दी कि ऐसी पूजा करो, तब क्या प्रतिमा पूजा सिब हुई या नहीं। श्रीयुत ज्ञानचन्दजी ने विनीत होकर कहा-महात्मन् ! हम अभीतक प्रतिमा पूजा के वास्तविक तात्पर्य से दूर थे, मापकी रुपा से मेरी व्यर्थ की शंका निवृत्त हुई, हम अवश्यमेव. मूर्ति पूजक बनेंगे और सबको बनना चाहिये इसीमें सबका सर्वथा श्रेय है सौभाग्य है और है शान्ति इस तरह वहां: उपस्थित सभी ने निष्पक्ष होकर मूर्ति-पूजा को सादर अंगीकार किया और वहां के सब सहर्ष अपने अपने घर को चले गये कालूरामजी भी तब से पक्के मूर्ति पूजक बन गये और ईश्वर. की सप्रेम-भक्ति में सुख पूर्षक दिन बिताने लगे। ॐ शान्तिः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com