Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 86
________________ ( ८२ ) तो देती है। दादाजी - बाहरे लाल चुझक्कड़, पेटू को पेटही दीखता; सुनो, जैसे- पेटू को चक्की को देखने से आटे की याद श्राती है उसी तरह भावुक भक्तजन को भगवान की प्रतिमा को देखने से भगवान् के निर्मल गुण कर्म स्वभाव का स्मरण होता है, उस स्मरण से दुषित कर्म नष्ट होता है निर्जरा होती है फिर परम शान्ति की प्राप्ति होती है । पंथी - महाराज, पत्थर का सिंह किसी को खाता नहीं और पत्थर की गौ दूध देती नहीं तो फिर पत्थर की मूर्ति किस तरह तारेगी ? दादाजी - सुनोजी, पत्थर के सिंह को देख कर देखने वालों को वास्तविक सिंह की याद आती है, उसके नर, पशु श्रादि को भक्षण करना आदि हिंसक स्वभाव का स्मरण होता है और पत्थर की गौ को देखने से वास्तविक गौ के दूध देना आदि गुणों का स्मरण होता है, इसी तरह भगवान् की मूर्ति को देख कर उनकी याद आती और उनके वास्तविक गुण स्वरूप का स्मरण होता है जिस से दूषित कर्मों का क्षय होता है । G पंथी - महाराज, प्रतिमा पाषाण की होती है, पाषाण एकेन्द्रिय है, अतः उसे पूजने से क्या लाभ ? दादाजी - नहीं जी, प्रतिमा एकेन्द्रिय नहीं है, वह तो घनेन्द्रिय है, क्योंकि जिनेश्वर भगवान् श्रनेन्द्रिय है और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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