Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 84
________________ (८०) यहां जिणघर नाम जिन (भगवान् ) का घर है, अत: उपर्युक्त सूत्र से सिद्ध हो गया कि जिन मन्दिर में भगवान है। पन्थी-महाराज, प्रतिमा अबोल है, जीव का भेद, इन्द्रियां, जाति, शरीर, भात्मा, प्राण, गुणटाला इत्यादि १४ मेव उसमें कुछ नहीं है, १५ बोल प्रतिमा में नहीं है इस-- लिये प्रतिमा श्रमान्य है। दादाजी-सुनियेजी, आपके धार्मिक-सूत्र-सिद्धान्तों की पुस्तकों में भी तो बोल नहीं हैं, तो क्या आपकी वे पुस्तके अमान्य हैं ? अङ्गीकार करना पड़ेगा कि धार्मिक पुस्तक मान्य है, उसी तरह वोल देव प्रतिमा भी मान्य ही है। और भी सुनिये कि सिद्ध भगवान् भी अबोल ही हैं, उनमें जीव के १४ भेद नहीं हैं, और इन्द्रिय गुणठाणा आदि १५ बोल भी नहीं हैं, तो क्या श्राप जैसे भी उन्हें बन्दना करता और मान करता है या नहीं ? कहना पड़ेगा कि मान करता और नमस्कार करता है, अतः अबोल भी देव प्रतिमा मान्य है और उसकी पूजा वन्दना धार्मिक क्रिया है, श्रेयस्कर है। पंथी-महाराज, मन्दिरों में जाकर पत्थर की मूर्ति को जो देखते हैं वे अपने घर के या पास के मकानों में लगे हुये पत्थर के खम्भे को ही क्यों नहीं दर्शन कर लेते ? दूर क्यों जाते ? दोनों तो पत्थर ही है। दादाजी-भाई, कुछ विचार भी तो करो, देखो और सुनो, भगवान की मूर्ति मन्दिरों में प्रतिष्ठित होने के बाद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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