Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 90
________________ __ पुस्तकों में आप अच्छी तरह देखले और मनन करें। पन्थी-महाराज, अभी किती सूत्र का पाठ देकर समझाइये, पीछे लो हम देखेंगे ही। दादाजी-सुनियेजी, 'महाकल्प सूत्र' में लिखा है कि___ “से भयवं तहारूवं समणं वा माहणं वा चेइयघरे गच्छेजा ? हे गोयमा दिणे दिणे गच्छे ज्जा"। भावार्थ-हे भगवन् महावीर ! तथारूप श्रवण चा माहण चैत्य घर ( जिन मन्दिर ) को जावें ? हे गोतन! प्रतिदिन जिन मन्दिर को जावे, नहीं जावे तो छ बेला का दण्ड भागी होवे । पंथी-महाराज, चैत्य का अर्थ तो साधू , या मति या अति . मान होता है, चैत्य का अर्थ जिन मन्दिर कहां है ? दादाजी-सुनोजी, 'चिती-संज्ञाने' धातु से 'चैत्य' शब्द सिद्ध होता है, 'नाममाला' में लिखा है कि "चैत्यं विहारे जिनसननि" अर्थात् नेत्य का नाम विहार या जिनालय है, इसी तरह 'अमरकोष' में लिखा है कि "चैत्यं प्रायतनं प्रोक्त” अर्थात् चैत्य शब्द का अर्थ सिद्धायतन अथवा जिनमन्दिर है, तथा हेमचन्द्राचार्य ने "अनेकार्थ संग्रह" में लिखा है कि-"चैत्यं जिनौक तद्विम्बं चैत्यमुद्देशपादपः” अर्थात् चैत्य का अर्थ जिममन्दिर है, जिनविम्व है और वह वृक्ष जिसके नीचे तीर्थकर भगवान् को केवलज्ञान प्राप्त हुश्रा थाइस तरह चैत्य का अर्थ जिनमन्दिर ही है इसके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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