Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 85
________________ बंदना-पूजा करने योग्य होती है घर के पत्थर के खम्भे जने योग्य नहीं है, और जैसे कागज कागज ही है, मगर जिस कागज में सरकारी छाप लगती है घह नोट, स्टाम्प, टीकट आदि के रूप में बहुमूल्य और लोकमान्य हो जाता है इसी तरह प्रतिष्टापित प्रतिमा भी मान्य है, और भी सुनो कि-राय प्रश्रेणी सूत्र' में सूर्याभ देव ने तथा 'जीवाभिगम सूत्र' में विजय देवता ने भगवान् की प्रतिमा को धूप दिया है जैसे-"धूवं देवाणं जिनवराणं" इसका अर्थ यह है कि जिनेश्वर देव को धूप दिया है," यदि गणधरों की इच्छा पत्थर को धूप देने के लिए होती तो वे "धूपं देवाणं पत्थराणं" ऐसा ही पाठ लिखते, अतः मन्दिरों में जाकर जिनेश्वर भगवान् का दर्शन करना चाहिये और पत्थर के खम्भे तथा जिनेश्वर की मूर्ति एक नहीं है। पन्थी-महाराज-प्रतिष्ठा कराई हुई प्रतिमा जब गुण को स्वीकार नहीं करती तब फिर प्रतिमा क्या? दादाजी क्योंजी, श्राप प्रतिदिन प्रातः काल और सायंकाल के प्रतिक्रमण (आवश्यक क्रिया) में ८४ लाख जीवों को क्षमा करते हैं वे ८४ लाख जीव आपकी क्षमा को स्वीकार करते हैं ? या नहीं करते हैं ? उसी तरह प्रतिमा में भी समझिये। पन्थी-महाराज-प्रतिमा के दर्शन से तो चक्की का दर्शन अच्छा क्यों कि चंकी पाटा को पीस कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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