Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 75
________________ (७१) और कोई तीसरी चीज नहीं है, न तो इस में खुदा है और न इस में उनका पैर है या न हाथ ही है, फिर आप का रंज कैसा ? । मौलवी-हां जी हां, बस इस में खुदा का नाम साफ लिखा हुआ मौजूद है, इस पर हम अपना पांव कैसे रख सकते हैं? दादाजी-जब आप कागज और स्याही से लिखा हुआ खुदा के नाम पर कुर्वान होते हैं तो फिर उनकी मूर्ति पर कुर्वान क्यों नहीं होते ? और श्राप यह कैसे कह सकते हैं कि हम जड़ चीजों को नहीं मानने । खैर आप यह तो बतलायें कि आप लोग माला के मण के गिनते हो या नहीं? मौलवी-हां जी जरूर गिनते हैं। दादाजी-अच्छा, श्राप के माला के मणको की जो खास संख्या निश्चित है, उस में अवश्य कोई कारण होगा, इस से मालुम होता है कि किसी न किसी बात की स्थापना जरूर है। कोई कहते हैं कि-खुदा के नाम एक सौ एक हैं, इसलिये माला के मण के १०१ रखे गये हैं। मतलब यह कि कोई न कोई विशेष कारण से ही संख्या का नियत है, बस इस से स्थापना की सिद्धि होती है और जिसने स्थापना स्वीकार ली उसने मूर्ति मान ही लिया, शिर्फ आकार का भेदभाव है, और जब कि श्राप, कागज, लकड़ी, या पत्थर के टुकड़ों में खुदा के नाम की स्थापना मानते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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