Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 81
________________ ... ( ७७ ) बात तो यह है कि पूर्वोक्त वृत्तान्त से जड़ पदार्थों की पुजा को करते हुये भी आप ईश्वर की मूर्ति-पूजा पर आक्षेप करते हैं सो बिलकुल बेठीक है, आपको अच्छी तरह विचार करना चाहिये । अन्त में सरदार शेरसिंह ने मूर्ति पूजा' को मान लिया और कहा कि महात्मन् दादाजी 'मृति-पूजा' वास्तव में ठीक है इसलिये प्रत्येक आदमी को चाहिये कि ईश्वर की मूर्ति की श्रद्धा भक्ति से प्रतिदिन पूजा कियो करें, इसी में ही सब का परम कल्याण है, क्योंकि ईश्वर से बढ़ कर पूजने लायक दुनिया में और कुछ नहीं है। इसके अनन्तर दादाजी ने हजरत ईसामसीह पादरी की तरफ देख कर शोले-क्यों पादरी साहब, आप तो मूर्ति-पूजा को मानते हैं ? पादरी-नहीं जी, मैं जड़ मूर्ति की पूजा को नहीं मानता। दादाजी-पादरी साहब यह तो शिर्फ कहने के लिये ही प्राप लोगों की बात है कि-हम 'मूर्ति पूजा' को नहीं मानते, मगर दर असल में श्राप लोगों का एक "रोमन कैथलिक" मत अच्छी तरह मूर्ति-पूजा को मानता है, क्योंकि वे लोग हज़रत मसीह और मरि. यम के चित्रों को गिर्जाघर में रखकर उस पर फूल, फल प्रादि चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं और रूम के तो सभी लोग मूर्ति-पूजक हैं। इसके अलावा मुअल्लिफ किताब दिल्लयस्तान-मजाहिष अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि हजग्न ईसा मसीह सूर्य को पूजा करते थे और रविवार को सूर्य की पूजा करते थे इसलिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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