Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 65
________________ (६१) अंगूठा न रहने के कारण फिर एकलव्य में वैसी लाघवतार नहीं रही और द्रोणाचार्य की प्रतिक्षा भी पूरी हुई, अर्जुन खुश हो गये। अब देखिये महाशय, द्रोणाचार्य की मूर्ति को पूजने ही से धनुर्विद्या में अर्जुन से भी अच्छा प्रवीण एकलव्य हो गया था। इसलिये जो लोग प्रति दिन श्रद्धा और भक्ति से वीतराग देव ईश्वर की मूर्ति को पूजेंगे उनको परम कल्याण और सफल मनोरथ क्यों नहीं होगा ? क्योंकि उपर्युक दृष्टान्त एक प्रसिद्ध इतिहास महा भारत का है। और भी सुनियेजिस समय मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् रामचन्द्रजी महाराज राषण भादि राक्षसों को मारकर पुष्पक विमान के द्वारा अयोध्याको भा रहे थे, उस समय रास्ते में अपनी स्त्री सीता को उन्हों ने उन उन स्थानों को बतलाया जहां जहां.. वे सीता के वियोग में घूमते रहे-जैसे" एतत्तु दृश्यते तीर्थ सागरस्य महात्मनः । यत्र सागरमुत्तीर्य तां रात्रिमुषिता वयम् ॥ एष सेतुर्मया बद्धः सागरे लवणार्णवे। तव हेतीविशालाक्षि! मलसेतुः सुदुष्करः।. पश्य सागरमक्षोभ्यं देहि ! वरुणालयम् । अपारमिष गर्जन्तं शङ्खशुक्तिसमाकुलम् ॥ हिरण्यनाभं शैलेन्द्र काञ्चनं पश्य मैथिलि! विधाभाथें हनुमतो भित्वा सागरमुत्थितम् ।। पतकुक्षौ समुद्रस्य स्कन्धावार निवेशनम् ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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