Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 72
________________ ( ६८ ) जाता है उसी तरह श्राप की भक्ति रूप दीपक से मेरे हृदय रूपं मन्दिर में केवल ज्ञान रूप प्रकाश होकर अन्धकार का नाश हो । 66 अक्षत, चावल " अक्षत चढ़ाते समय यह भाषमा करते हैं कि हे भगवान् ! हम इन अक्षतों को आप को सम्र्पण करते हैं और इन अक्षतों की पूजा से हमको आपकी अक्षत भक्ति की प्राप्ति हो और अक्षत सुख-शान्ति की भी प्राप्ति हो । मिष्टान्न 6. "" मिशन (मिठाई ) अर्पण करते समय यह भावना करते हैं कि. हे ईश्वर ! हम अनादि काल से इन वस्तुओं को भक्षण करते आये हैं, मगर अभी तक तृप्ति नहीं हुई, इसलिये इन्हें आप को समर्पण कर श्रापसे प्रार्थना है कि हम भी आपकी भक्ति के प्रताप से इन वस्तुओं से तृप्त हो जावे अर्थात् मुक्त हो जावें । अथवा एक ही वार यह प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर ! वीतराग परमात्मा ! हमें संसार की ये पूर्वोक्त सभी चीजे मोहित कर रही हैं और आपने उन सभी पदार्थों को त्याग दिया है, निर्विकार वीतराग हैं, इसलिये आप की भक्ति से हमारी भी इन पदार्थों से मुक्ति हो और हमें भी आप के जैसी सुख-शांति और वैराग्य उत्पन्न हो । आप इन बातों को कह कर दादाजी ने फिर कहा कि - कहिये कालूरामजी और आर्य छज रामजी महाशय, क्या अब भी आप को 'मृति-पूजा' के विषय में कुछ सन्दद्द है ? दानोंन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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