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प्रति समपर्ण करके आप से यह सविनय प्रार्थना करता हूँ कि थे कामदेव के बाण जो अनेक योनियों से मुझे विषय वासना सम्बन्धी दुःख को दे रहे हैं, आपकी भक्ति से अब आगे दुःख नहीं दें... ● इत्यादि ।
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फल
मूर्ति के सामने फल रखने के समय में यह प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान्! आपकी भक्ति का मुक्तिरूप फल मुझे प्राप्त हो ।
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'चन्दन, केशर, कस्तूरी आदि
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इन सुगन्धित वस्तुओं को चढ़ाते समय यह भावना करते हैं कि हे ईश्वर ! इनकी सुगन्ध से दुर्गन्ध जिस तरह दूर भागती है उसी तरह आप की भक्ति से हमारी बुरी विषयवासना दूर होजाय ।
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धूप "
धूप देने के समय में ऐसी भावना करते हैं कि, हे भगवान् ! जिस तरह धूप अग्नि में जल कर राख हो जाता है उसी तरह आप की दृढ़ भक्ति से मेरे सब पाप जल कर राख हो जाय और जैसे वह धूआं ऊपर को ही जाती है वेसे ही हम भी उ लोक (मोक्ष, कैवल्य ) को जावें ।
दीप "
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मूर्त्ति के सामने दीपक दिखाते समय यह भावना करते हैं कि हे ईश्वर ! जिस तरह दीपक के प्रकाश से अन्धकार दूर हो
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