Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 64
________________ (६०) "एक प्यारा कुत्ता भी था वह कुत्ता इधर उधर घूमता हुआ वहां जा निकला जहाँ एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था, कुत्ता एकलव्य को देखकर भूकने लगा तब एकलव्य ने सात बाण ऐसे चलाये कि जिनसे उस कुत्ते का मुख बन्द हो गया श्री कुत्ता शीघ्र ही दुःखित होता हुश्रा पाण्डवों के पास चला पाया । फिर शीघ्र ही पाण्डवों ने इस विचित्र रीति से 'कुत्ते को मारने वाले को ढूंढा तो श्रागे कुछ दूर जाने पर देखा कि-एकलव्य अपने सामने एक मिट्टी की मूर्ति को रख कर धनुर्विद्या को सीख रहो है। तब अर्जुन ने उससे पूछा कि-महाशय, श्राप कौन हैं ? तब उसने उत्तर में कहा किमेरा नाम पकलव्य है और हम द्रोणाचार्य के शिष्य हैं। यह सुनने ही अर्जुन द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कहने लगा कि-महाराज, आपने तो मुझ से कहा था कि हमारे "शिष्यों के बीच धनुर्विद्या में सबसे प्रवीण तुम ही होगे, किन्तु एकलव्य को तो आपने मुझ से भी अच्छी शिक्षा दी है। द्रोणाचार्य ने कहा-मैं तो किसी एकलव्य को नहीं जानता हूँ, चलो देखू कौन है ? वहाँ जाने पर पकलव्य ने प्राचार्य द्रोण के पदरज को अपने मस्तक पर रक्खा, और कहा कि आपको मूर्ति की पूजा से ही मुझे धनुर्विद्या में ऐसी योग्यता प्राप्त हुई है, श्राप मेरे गुरु हैं। प्राचार्य द्रोण ने कहा कि फिर तो हमारी गुरु दक्षिणा प्रदा करो । एकलव्य ने कहा कि आप जो कहें सो देने के लिए तैयार हूं। प्राचार्य द्रोण ने अर्जुन को प्रसन्न करने के लिये एकलव्य से दक्षिणा में दाहिने हाथ की अंगूठा मांगी। एकलव्य सहर्ष दे दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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