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(४७) भावार्थ-हे रुद्र ! तुम्हारी जो मूर्ति कल्याण करने वाली सुन्दर और पवित्र है, उसके द्वारा हमाग कल्याण बढ़े। - यहां भी 'तनू' शब्द से ईश्वर की साकारता साफ साफ है। और भी सुनिये
"व्यम्बकं यजामहे सुगिन्धं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्" ।
. ( यजुर्वेद, अध्याय ३ मंत्र ६) इसका निरुक्त में इस तरह व्याख्यान है[त्रीणि अम्बकानि यस्य स ऽयम्बको रुद्रस्तं यजामहे सुगन्धिं (सुष्टु गन्धि) पुष्टिवर्धनम् (पुष्टिकारकम्) इव, उर्वारुकमिव फलं बन्धनात्--प्रारोधनात् मृत्योः सकाशात् मुश्चस्व मां कस्मादिति-एषाम्-इतरंषाम् पराभवति ] ___ इसी तरह महीधर श्रादि वेद टीकाकारों ने भी उपयुक मंत्र की व्याख्या की है। ___ ऊपर के व्याख्यान का भावार्थ:-हम तीन नेत्र वाले शिवजी की पूजा करते हैं, सुगन्धित पुष्टिकारक पका हुमा खरबूजा जिस तरह अपनी लता से अलग हो जाता है, उसी तरह हमको मृत्यु से अलग करके मोक्षपद की प्राप्ति कराइये।
इससे भी ईश्वर की साकारता सिद्ध होती है, क्योंकि नेत्रों का होना शरीर के विना असम्भव है।
और भी सुनियो"नमस्ते नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीदुषे। अथो ये अस्त्र सत्वानो हन्तेभ्योऽकरनमः ॥"
___(यजु० अ० १६ मंत्र )
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