Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 54
________________ ( ५० ) तनू (शरीर) बन जाय । 4. इसकी पुष्टि में उपनिषद् और ब्राह्मण आदि वेद व्याख्याश्र के सैकड़ों प्रमाण मिल सकते हैं। इससे भी ईश्वर की साकारता सिद्ध होती है । और भी सुनिए: " श्रादित्यै गर्भ पयसा समधिः सहस्रस्य प्रतिमां विश्वरूपम्। परिवृधि हरसामाभिमंस्थाः । शतायुषं कृणुद्दि चीयमानः ॥ 19 mi भावार्थ:- सहस्र नामवाला जो ईश्वर है. उसकी स्वर्णादि धातुग्रों से बनाई हुई मूर्ति को पहले अग्नि में डाल कर उसका विकार (मल) दूर करना चाहिये, अनन्तर उस ईश्वर की मूर्ति को दूध से धोना और शुद्ध करना चाहिये, क्योंकि, विशुद्ध स्थापना की हुई मूर्ति प्रतिष्ठाता पूजक-पुरुष को दीर्घायु और बड़ा प्रतापी बनाती है । इससे भी ईश्वर की साकारता और मूर्त्ति पूजा सिद्ध है, आशा है कि अब आप उपर्युक्त वेद के मंत्रों के भावार्थ के ऊपर अच्छी तरह ध्यान देंगे तो आपको ईश्वर की साकारता और मूर्ति पूजा पर अतिशय श्रद्धा और दृढ विश्वास अवश्यमेव होगा खैर कुछ और भी सुनिये - "यदा देवतायतनानि कम्पन्ते दवताः प्रतिमा हसन्ति रुदन्ति नृत्यन्ति स्फुटन्ति विद्यन्ति उन्मीलन्ति निमीलन्ति । ... "अथर्वण वेद ..........” | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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