Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 49
________________ ( ४५ ) जानेवाले धर्मों (सुनना, सूंघना, चलना-फिरना आदि) को नहीं कर सकता, अतः अब अप ही पक्षपात को छोड़ कर विचार पूर्वक कहें कि जड़ से चेतन को कितना लाभ होता है । इसलिये मेरे प्यारे श्रार्य महोदय ! तथा अन्य भावुक श्रोतृगण ! यदि आप लोग पक्षपात को छोड़ कर न्याय की दृष्टि से पूर्वोक्त मेरे युक्तियों और प्रमाणों को अच्छी तरह विचार करें तो मूर्तिपूजा अवश्यमेव मानेंगे और जनता में अपने बाहुओं को ऊपर उठाकर कहेंगे कि भाइयों ! 'मूर्ति-पूजा' वास्तव में ठीक है सर्व जनहित कारक है इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन यथासमय सुरुचिपूर्ण भाव- भक्ति से 'मूर्ति पूजा' अवश्य करनी चाहिये । अनन्तर, काका कालूरामजी और श्रार्य छज्जूरामजी दोनों ने हाथ जोड़ कर अति विनीत भाव से दादाजी को कहा महात्मन् ! अब हम लोग इस बात को मानते हैं कि 'मूर्त्ति - पूजा' अवश्य करनी चाहिये और इस बात को भी सादर स्वीकार करते हैं कि निराकार ईश्वर की मूर्ति ( प्रतिमा ) बन सकती है, क्योंकि इस बात के न मान ने में हम लोगों की जितनी शंकायें थीं वे सब की सब आप की युक्तियों के द्वारा दूर होगई, मगर अब सबाल शिर्फ इतना है कि आप कृपा करके वेदों के मन्त्रों से यह सिद्ध करके दिखलावें कि- वेदों में भी निराकार ईश्वर के साकार रूप होने का वर्णन है, क्योंकि वेदों में हम लोगों की अधिक श्रद्धा और विश्वास है । दादाजी - अच्छा जी, साहब, अब आपके कथनानुसार मैं वेदों के प्रमाणों से निराकार ईश्वर के साकार स्वरूप को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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