Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 38
________________ . . .. (३४) ही पूजते हैं, फिर बात तो यों की यों रही और वास्तव में विचार करें तो आर्यसमाजी लोग भी मूर्ति-पूजा को मानते हैं। मार्य-महाराज, माप यह क्या कह रहे हैं कि-आर्य समाजी लोग भी मूर्ति-पूजा को मानते हैं। क्या यह कभी हो सकता है? दादाजी-जी हाँ, आर्य समाज भी मूर्ति-पूजा को मानती है क्योंकि जब आर्यसमाज धर्म के सूत्रधार स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही मूर्ति-पूजा मानी है तो उनके अनुयायियों का कहनो क्या ? आर्य-अररर ! भाप तो बड़ी गजब की बात कह रहे हैं, भला, स्वप्नावस्था में भी कभी कोई इस बात को मान सकता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती 'मूर्ति-पूजा' को . मानते थे। दादाजी--जी हाँ, थोड़ा भी पढ़ा लिखा विचार घाला व्यक्ति स्वामीजी के मूलग्रन्थ को ही देखकर विना हिच. किचाहट के साथ यह कह सकता है कि स्वामीजी 'मूर्ति पूजा' को मानते थे और इस बात को हम श्रापको जागृतावस्था में ही समझाते हैं खूब ध्यान देकर सुनिये। आर्य--अच्छा , सुनाइये। दादाजी--सुमोजी, आप लोग वेदी को रचकर घृत आदि उत्तम पदार्थ से अग्नि में हवन करते हैं। सो क्या अग्नि पूजा, या जड़-पूजा वा मूति-पूजा नहीं है? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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