Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ (३५) अथवा यों कहो कि--अग्नि में ईश्वर की स्थापना. को मान कर पूजते हैं। आर्य-जी ना, हम स्थापना नहीं मानते, किन्तु यह मानते हैं कि-हवन करने से वायु शुद्ध होती है और वह हवनकी धूनां दूर तक पहुँच कर दृषित जल वायु को पवित्र करती है जिससे रोगों के कीटाणु न होते और लोगों का स्वास्थ वृद्धि रूप महा कल्याण होता है। दादाजी-महाशय, यदि हवन से वायु को ही शुद्ध करना है तो वेदी आदि बनाने की क्या जरूरत ? शिर्फ चूल्हे में ही घी आदि को डाल देने से घायु के संयोग से अपने आप सुगन्धि चारों ओर फैल जायगी। यदि थोड़ी देर के लिये वेदी पर हवन करना स्वीकार कर लिया जाय तो हवन करने के समय में वेद के मन्त्रों को पढ़ने की क्या जरूरत ? अतः सिद्ध हो गया कि जैसे मूर्ति-पूजा काल में मूर्ति-पूजक लोग ईश्वर की प्रशंसा में श्लोक स्तुति आदि को पढ़ते हैं, वैसे ही श्राप लोग भी ईश्वर की प्रशंसा में वेद-मन्त्रों को पढ़ते हैं और अग्नि-पूजा को करते हैं ।... आर्य-महाराज, स्वामी दयानन्द सरस्वनी ने अपने ग्रन्थों में मूत्ति-पूजा को खण्डन ही किया है और श्राप कहते हैं कि-स्वामीजी मूर्ति पूजा को मानते थे। दादाजी-क्यों, ऊपर जो हबन की बातें कहीं हैं, उसको स्वा. मीजी नहीं मानते थे ? कहना पड़ेगा कि स्वामीजी हवन के पक्के पुजारी थे। इस पर भी यदि दिल में पूरी तसल्ली न हुई तो कुछ और सुनिये और खूब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94