Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 44
________________ (४०) निराकार ईश्वर का बोध हो जाता है और अन्त में परम शान्ति मिलती है। और भी सुनिये और अपने मन में गुनिये कि-श्रापके कथनानुसार ईश्वर निराकार है, मगर साकार ॐ पद में ईश्वर का समावेश हो जाता है, इसलिये निराकार साकार हो सकता है और साकार से निराकार का बोध हो सकता है। एवं श्राप ईश्वर को सर्व व्यापक मानते हैं और मानते हैं कि परिछिन्न प्रतिमा में उसका समावेश नहीं हो सकता, मगर आपको शोचना चाहिये कि जब सर्व व्यापक ईश्वर एक छोटा-सा ॐ पद में आ सकता है, तब यह मूर्ति में नहीं आ सकता क्या ? इसी तरह जब एक छोटासा ॐ शब्द सर्व व्यापक विभु का पोध करा सकता तप फिर मुर्ति क्योंकर नहीं करा सकती? जैसे निराकार ईश्वर को ॐ के रूप में लिखा या माना जाता है इसी तरह पत्थर या धातु की प्रतिमा में यदि ईश्वर की स्थापना मान ली जाय तो आपत्ति क्या? आप मानते हैं कि ईश्वर-बान निराकार है, मगर साकार जड़ वेदादि पुस्तकों में भी तो ईश्वर का ज्ञान मानते हैं, पाप अब पक्षपात को छोड़कर मध्यस्थ बुद्धि से विचार करके श्राप ही कहिये कि यह स्थापना नहीं तो और क्या है ? इसलिये प्रापको अवश्य मानना पड़ेगा। निराकार ईश्वर के ज्ञान की स्थापना साकार वेदों में हुई हैं और निःसंदेह ईश्वर का शान अनन्त है, मगर प्रमाण वाले शास्त्रों में तो इसकी स्थापना अवश्य करनी पड़ती है, अथवा यों कहना पड़ता है कि वेदों में ईश्वर का शान है। इस तरह यदि निराकार ईश्वर की मति बनाली जाय तो क्या दोष है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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