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( ३३ ) शानी को ही होता है और साकार का बोध साधारण जन को भी हो सकता है, इसलिये उस निराकार ही परमात्मा की सेवा पूजो मूर्ति के बिना साधारण जीवात्मा से कभी नहीं हो सकती, प्रतः
परमात्मा की सेवा में मूर्ति कारण है। मार्य-भला, आप क्या कह रहे हैं,-परमात्मा की सेवा में
जड़ मूर्ति को कारण मानने की क्या जरूरत है ? क्या केवल वेद के मंत्रों के द्वारा ही परमात्मा की पूजा
प्रशंसा नहीं हो सकती? . दादाजी क्यों जी, आपके वेदों की ऋचा क्या चैतन्य है?
वे भी तो जड़-अक्षरों के ही समूह है, इस तरह आपके कथनानुसार भी तो ईश्वर-पूजा का कारण
जड़ (मूर्ति ) ही सिद्ध हुआ। मार्य-महाराज, हम उन जड़ मरों के द्वारा परमात्मा के
गुणों को जपते हैं अर्थात् परमेश्वर को भजते हैं। दादाजी-हां, जैसे आपने जड़-अक्षरों से ईश्वर की स्तुति, या
संस्मरण किंवा जाप किया, उसी तरह मूर्ति-पूजक भी मूर्ति के द्वारा ईश्वर को ही जाप, या स्मरण किंवा स्तुति को करते हैं। दर असल में बात दोनों
की एक ही है मगर समझ में हेर-फेर है.। . आर्य-अच्छा , यह ठीक है कि वेद-जड़ है, मगर हम उससे
प्रशंसा तो परमात्मा को ही करते हैं। दादाजी-अब देखो. क्यों जी, मर्ति पूजक मूर्ति में किस की
पूजा करते हैं ? वे भी तो सच्चिदानन्द परमेश्वर को
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