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(११) हुये, क्योंकि प्रारम्भिक इङ्गलिश शिक्षा वाले प्रायः वेदादि सत्य शास्त्र और ईश्वर को भी हृदय से नहीं मानते इसके दर्जनों प्रमाण मिलते हैं, यही बात कालूराम को भी सवा सोलह आना लागू हुई, ऐसे प्रसंगों पर महात्मा तुलसीदास का एक दोहा कितना उपयुक्त है सुनिये" ग्रह-गृहीत पुनि बात-घश तापर बिच्छू-मार ।
ताहि पिलावे वारुणी, कहो कौन उपचार ॥" फिर क्या था, कालूराम ने समय पाकर धर्म मार्ग को शीघ्र ही तिलाञ्जलि देदी । चूँकि, यह एक साधारण प्रसिद्ध व्यक्ति थे, धनी थे, इसलिये इनके अनुयायी भी शीघ्र ही अधिक संख्या में हो गये। प्रायः अधर्म करते आदमी को तत्काल में कष्ट नहीं होता और धर्म करने में तो बड़े बड़े शूरवीरों को भी खट्टी डकार पानी लगती हैं, शास्त्र भी कहता है कि “धर्मस्य गहना गतिः " अर्थात् धर्म की गति बहुत कठिन है, बात सवा सोलह श्राना सच्ची है. क्योंकि धर्मपालन करने में भगवान रामचन्द्र, बुद्ध, महावीर, युधिष्ठिर
और नल प्रादि को कितका कष्ट उठाना पड़ा था, इतिहास साक्षी है। मगर कष्ट सहकर भी अपने धर्मों को पूरी तरह पालन करने के कारण ही इन लोगों का नाम स्वर्णाक्षर से अङ्कित अजर अमर हो गया। इसके विपरीत असत्य भाषण चोरी जारी आदि पाप कर्म सुगमता से हो जाते हैं, किन्तु दोनों के बीच बहुत कुछ अन्तर हैं, जैसे-धर्म कार्य तो प्रारम्भ में विष के समान मोलुम होता है और परिणाम में अमृत के जैसा होता है लेकिन पाप कर्म के प्रारम्भ में सुगमता और लाभ भी मालुम होता है किन्तु परिणाम विषमय होता
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