Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 19
________________ ( १५ ). मलिन हृदय पट पर पड़ने के लिए प्रस्थान की। क्योंकि व्यक्ति मात्र के सुख दुःख में यथा समय हेर फेर अवश्य होता है इस बात को कवि-कुल-किरीट कालीदासने खूष अच्छी तरह लिखा है - "कस्यात्यन्तं सुखमुपगतं दुःखकान्ततो वा नीचर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण" अर्थात् लगातार सुख या दुःख किसी को नहीं होता, किन्तु जैसे गाड़ी के चलने केसमय में गाड़ी का चक्र (पहिया, चक्का) और नेमि ( श्रारा) ऊपर और नीचा होता रहता है, उसीतरह प्रत्येक जीवों का जीवन सुख और दुःख से भरा हुधा है। कभी सुख तो कभी दुःख ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जिलको सदा केवल दुःख ही मिला हा या सुख ही मिला हो। प्रकृति देवी की लीला तो विचित्र है ही, समय को पाकर उस सुधारक पुर गांव के पास एक सच्चात्यागी सर्व शास्त्रज्ञ महोपदेशक दादा दीनबन्धु नाम के योगीराज पाये। सच्चा धर्म कर्म का उपदेश करना और लोगों के उचित प्रश्नों का समुचित उत्तर देना योगीराज का खास काम था। स्वभाव में बड़े ही सौम्य थे, वाणी मीठी थी और थी प्रभाव बाली। प्राचार सदाचार था कोई कुछ पूछता तो हंसते हंसते उसका उत्तर दे देते थे विपक्षियों के मन में भी उनके उपदेशों का मान था । क्यों न मान हो, क्योंकि सच्चे दिल से जो धर्म के पुजारी हैं उनके चरणों में आज भी दुनियाँ नतमस्तक होती है। अस्तु एक दिन अवसर पारक काका कालूगम भी योगीराज के भाषण को सुनने के लिये गये । पहले तो इन्हों ने अपने मन में ऐसा इरादा करके चला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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