Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 20
________________ (१६) कि किसी तरह अपने प्रश्नों के बदौलत योगीराज को चुप अवश्य करना चाहिये साथ में इनके अनुयायी भी अनेक थे। पण्डाल की रचना अच्छी तरह हुई थी, हजारों की संख्या में अनेक तरह के विचार वाले लोग वहां इकट्ठे हुये थे। व्याख्यान की जगह अनेक उपकरणों से शोभित थी। निर्दिष्ट समयानुसार योगीराज वहां पहुंच गये। पहुंच ते ही उनके सबही ने समुचित स्वागत करके निजी सत्कार बतलाया योगीराज ने भी सब को जय जगदीश कहकर अपने प्रासन पर बैठ गये और बैठते ही ॐ शब्द की हर्ष-प्रद ध्वनि की। उसके अनन्तर बड़े प्रेम से माङ्गलिक श्लोकों को प्रारम्भ में बोले, जिससे श्रोतागण के मन एकाग्रचित्त से उनके भाषण को सुनने के लिये हर्ष से प्रफुल्लित होकर मंत्र मुग्ध से होगये। अनन्तर योगीराज ने श्राने भाषणों में दान, शील, तप, भाधना, विनय, चारित्र्य, देव-गुरु-भक्ति और ईश्वर पूजन आदि को खूब विस्तार-पूर्वक सुन्दर भावों में अनेक दृष्टान्त और आगम आदि के प्रमाणों से लोगों को समझाया। मानवता की अच्छी तरह व्याख्या की। धर्म की रक्षा को करने के लिये लोगों को खूब उत्साह बढ़ाया और सब में सफल हुए । भाषण ऐसा मधुर मनाहर और रुचिकर था कि साधारण व्यक्ति भी कान लगाकर सुनते थे । कठिन से कठिन विषयों को ऐसे सीधा सादा करके समझाते थे कि दुर्बोध बांसक भी उस बात को सहज में समझ लेता था। इस तरह उस दिन का भाषण समाप्त हुश्रा और सबके सब वास्तविक धर्मोपदेश से उत्पन्न परम श्रवणानन्द को अपनी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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