Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 33
________________ (२६) इसके बाद सिक्ख मित्र की तरफ नजर करके-महाराज आपका शुभ नाम सरदार सेरसिंह है। श्राप गुरु नानक साहिब के और गुरु गोविन्दसिंह के परम भक्त हैं। आपको गुरुत्रों की वाणी में अतिशय श्रद्धा और प्रेम है। आप गुरु नानक रचित ग्रन्थों के अलावा और भी अच्छे अच्छे किताबों के तालिम पाये हैं। फिर तेरह पन्थी जैन ज्ञानचन्द्रजी की तरफ इशारा करके महाराज प्रापका शुभ नाम ज्ञानचन्द लूकण है। श्राप तेरह पन्थियों में प्रधान साधु श्री भिक्खु स्वामी और जीतमलजीमहाराज के सिद्धान्तों को अच्छी तरह जानते हैं। आप पक्के तेरह पन्थी श्रावक हैं। इस तरह काकाजी ने अपने उन. पांचों मित्रों से दादाजी को परिचित कराया। बाद में 'मूर्ति पूजा' विषय को लेकर वाद विवाद प्रश्नोत्तर का श्रीगणेश हुना। दादाजी-पहले छज्जूरामजी शास्त्री आर्य समाजी की तरफ नजर करके--क्यों; छज्जूरामजी, आप मूर्ति-पूजा . को तो मानते हैं ? आर्य छज्जूजी-नहीं, महाराज हम मूर्ति पूजा को नहीं मानते, क्योंकि मूर्ति जड़ है. अतः जड़ की पूजा से कुछ भी लाभ नहीं। दादाजी-महाशय, यह केवल कहने की बात है कि--हम मूर्ति पूजा को नहीं मानते, मगर पक्षपात को छोड़कर सच्चे दिल से विचार करें तो यही कहना पड़ेगा कि इस दुनिया में ऐसा एक भी मज्झन नहीं जो मूर्तिपूजा से अलग हो । आप लोग भी मूर्ति पूजा को मानते हैं । मूर्ति पूजा जड़-पूजा नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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