Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 28
________________ ( २४ ) हृदय में चिन्तनीय हैं तो ईश्वर का आकार कैसे हो सकता है ? दादाजी - जब आप का ईश्वर निराकार है और हृदय मात्र चिन्तनीय है तब उस ईश्वर के साथ ॐ पद का सम्बन्ध नहीं रहेगा, क्योंकि ॐ पद रूपी है, इसलिये ॐ पद के ध्यान उच्चारण आदि से आप को कुछ भी लाभ नहीं होगा । काकाजी - ना ! जी महाराज, जब इन ॐ पदका ध्यान करते हैं तब हमारा ध्यान ॐ पद के साथ नहीं रहता, प्रत्युत उस समय ॐ पद के वाच्य ईश्वर में रहता है । दादाजी -- जब आपका ध्यान उस ईश्वर के 'वाचक' ॐ पद को छोड़ कर 'वाच्य' ईश्वर में रहता है तब आपको ईश्वर के 'वाचक' ॐ पद की क्या आवश्यकता है ? काकाजी — कुछ कटकटा कर, महाराज - यहाँ ॐ पद की आवश्यकता इसलिये होती है कि - ॐ पद के बिना ईश्वर का ज्ञान हो ही नहीं सकता । दादाजी - कुछ मुसकुराते हुये - हां, अब ठीक रास्ते पर श्रा गये, अच्छा सुनो और ध्यान देकर खूब सुनो और समझो भी कि - जैसे, ॐ पद की स्थापना के बिना ईश्वर का ध्यान नहीं हो सकता, वैसे ही मूर्ति के विना साधारण मनुष्यों को ईश्वर का ज्ञान ध्यान भी नहीं हो सकता, क्योंकि जब तक मनुष्य को केवल ज्ञान नहीं होता, तब तक मूर्त्ति के विना ईश्वर के स्वरूप का बोध होना कठिन ही नहीं बल्कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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