Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 22
________________ ( १= ) काकाजी - महाराज, महाकाश-स्वरूप ईश्वर को छोटी जड़मूर्ति में मान कर पूजा करने से उस विशाल स्वरूप ईश्वर का ज्ञान कैसा ? दादाजी - सुनोजी, पृथिवी लाखों कोस तक लम्बी चौड़ी है, मगर भूलोग पढ़ने वाले २-३ फूट के कागज पर ही उसका ज्ञान कर लेते हैं । इसी तरह श्राप 'ॐ' शब्द को ईश्वर का बोधक मानते हैं, इसलिये जैसे अत्यन्त लघु रूप 'ॐ' शब्द से ईश्वर का बोध आपको होता है, वैसे ही मूर्ति-पूजकों को भी आपके 'ॐ' शब्द से भी बड़ी आकारवाली मूर्ति से ईश्वर का ज्ञान होता है, इसमें आश्चर्य क्या ? काकाजी - महाराज, मूर्त्ति जड़ है, इसलिये वह तो अपनी देव की भी रक्षा नहीं कर सकती, तो फिर हम लोगों की क्या रक्षा कर सकती है ? दादाजी - महाशय, आपकी वेदादि पुस्तकें भी तो जड़ हैं, वे अपनी रक्षा स्वयँ नहीं कर सकतीं, मगर उन पुस्तकों के द्वारा हम लोगों को कितने ज्ञानों का लाभ होता है आपको मालुम होगा, इसलिये जड़मूर्ति तो स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर सकती, मगर उसका पूजा करने वालों को उसके द्वारा बहुत रक्षा होता है और उसकी अपनी भी रक्षा होती है । काकाजी - महाराज, जड़ मूर्ति को प्रति दिन भक्ति भाव से पूजा करने से मूर्तिपूजकों मन में जड़ता का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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