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(२१) आकर उसको दण्ड देता है या पहले ईश्वर को यह बात मालुम नहीं थी कि यह मुझे दुर्वाक्य कहेगा,
इसलिये इसको पैदा करना अच्छा नहीं ? नहीं! नहींजी !! कभी नहीं! बिलकुल नहीं !! हरगिज नहीं!!! ईश्वर उस दुर्वाक्य कहने वालों को स्वयं प्राकर कुछ नहीं कहता, मगर उसका परिणाम उस दुष्ट व्यक्ति पर भयानक रूप से पड़ता है क्योंकि वह तमोगुणयुक्त अज्ञान के वश में होकर वैसा कहता है जिसका फल उसको बहुत बुरा होता है । बस अब आप अपने उपयुक्त प्रश्नों के उत्तर में भी इसी घात को ध्यान में लावें कि मूर्ति तो अपने आप उन चुराने घालों को कुछ नहीं कह सकती मगर उन चोरों को इसका दुष्परिणाम अवश्य भोगना पड़ता है और मूर्ति की सेवा, रक्षा 'श्रादि करने से सेवक की रक्षा भी मूर्ति के द्वारा होती है। काकाजी-महाराज, चैतन्य प्रात्मा को जड़ मूत्ति से क्या
लोभ ? क्योंकि जड़ चीजे न अपना ही कोई उपकार कर सकती और न चेतन को ही कर सकती हैं, इसलिये मूर्ति पूजा नहीं करनी चाहिये।
दादाजी-वाहजी वाह सावस, क्या जड़ चैतन्य को कुछ भी
लाभ नहीं पहुँचाता ? अच्छा सुनो-मानलो कि एक श्रादभी अच्छा हट्ठा-कडा शरीर में सुडौल है मगर उसे पाखें नहीं है तो क्या वह कुछ देख सकता है ? उत्तर में कहना पड़ेगा कि नहीं। अब यहां देखना चाहिये कि चैतन्य रूप आत्मा तो उसमें विद्यमान . है मगर जड़ ांखों के न होने से उस चेतन मात्मा
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