Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 14
________________ ( १० ) (4 काका कालूरान नाम के एक व्यक्ति रहते थे । इनके पूर्व वंशज तो आस्तिक थे, देव-मूर्त्ति पूजक थे, वेदादि सत्य शास्त्र को मानने वाले थे, ईश्वर पर विश्वास रखते थे सदाचारी थे और थे कुलीन । मगर जब काका कालूराम इस दीवानी दुनियां में दीखने और दीखाने लायक हुये तो इन्होंने वेद-शास्त्रों, प्राचीन कल्याण कारक धर्मवृक्ष पर कुल्हाड़ी फेरना शुरू कर दिया, क्योंकि कालूराम को आरम्भ में धार्मिक शिक्षा नहीं देकर इंगलिश फर्स्ट बुक ( श्रंगरेजी की प्रथम पुस्तक ) ही पढ़ने के लिए दी गई थी । कुछ दिन के बाद नई दुनियां की नई हवो जब कालूराम को लगी तब वे अंग्रेजी को भी अधूरा ही छोड़ कर इधर उधर भटकने लगे और नये आर्यसमाजियों की तरह पल्लवग्राहि पाण्डित्यं " के अनुसार थोड़ा थोड़ा हर एक मज्भब को दिल और श्रांख को अलग अलग करके देखा, फिर क्या कहना है इनके श्राचरण और मान्यता के विषय में, अर्थात् यूरोपीय अनार्य सभ्यता इनके दिल में घुस गई और ये लोकोपकारी सत्य सनातन सुख प्रद प्रत्येक आर्य-धर्म-कर्म को अपने दिल से उड़ा दिये, इनको ईश्वर और धर्म केवल ढोंग ही दीखने लगे, यानी नये आर्यसमाजियों से भी ऊंचे दर्जे में इनका नाम दाखिल हो गया। चूंकि नये सुधारक आर्य समाजियों की प्रारम्भिक शिक्षा प्रायः किसी वैदिक मन्त्र से ही दी जाती है जिस में खास कर ईश्वर या धर्म का वर्णन रहता है, इसलिये ऐसे आर्यसमाजी वेदादि सच्छास्त्र और ईश्वर आदि सर्व मान्य वस्तुओं को अवश्य मानते हैं । मगर कालूराम की आरंभिक शिक्षा इंगलिश शिक्षा थी, इसलिये वे नये श्रार्य समाजी से भी ऊंचे दज में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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