Book Title: Murti Puja Tattva Prakash
Author(s): Gangadhar Mishra
Publisher: Fulchand Hajarimal Vijapurwale

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Page 13
________________ (६) क्योंकि बहुत ऐसे भी बन्धुगण हैं, जिन्हें मूर्ति-पूजा-निन्दको की विभ्रम वाणी को सुनकर मर्ति-पूजा की ओर प्रवृत्ति नहीं होतो, नतीजा यह निकलता कि ऐसे भोले भाई अपने सुगम कल्याण-पथ से गिर जाते है। मैं यह नहीं कहता कि श्राप सहसा मेरी बातको मानले कि मूर्ति पूजा अवश्य करो, किन्तु यह भी कहने से चुप नहीं रहा जाता कि इस में जो कुछ लिखा जा रहा है वह प्राय: सप्रमाण सोपपत्तिक और सयुक्तिक है, इसलिये श्राप यदि निष्पक्ष भाव से प्रेम-पूर्वक इसको पढेंगे और मनन करेंगे तो आपके हृदय में इस से अवश्य पूर्ण सन्तोष होगा, एवम् मूर्ति-पूजा में प्रीति और भक्ति होगी, तथा श्राप स्वयं दूसरों का कहेंगे कि भाइयों ! 'मूर्ति पूजा' अवश्य करनी चाहिये ।'अथवा संक्षेप में या कह सकते हैं कि वैदिक धर्मावलम्बी, बौद्ध, जैन, सिक्ख. इसाई और मुसलमान श्रादि सब के सब किसी न किसी रूप में मूर्ति-पूजा को अवश्य मानते हैं ।। हां, यह दूसरी बात है कि कोई तो खुल्लम खुल्ला मानता है और कोई किसी स्वार्थान्ध के भ्रमपूर्ण बहकाव में प्राकर विवेक हीन होने से 'मूर्ति-पूजा' को नहीं मानने का दावा करता है, मगर ऐसे व्यक्ति और उनके उपदेशक सुधारक भी किसी न किसी तरह मूर्ति पूजा को अवश्य ही स्वीकार करते है। हम अब इन बातों को किस्ला, कहानी, इतिहास, युक्ति, तर्क और प्रमाणों के द्वारा आप को बतलाते हैं, श्राशा है श्राप पर्ण-ध्यान देकर इसे सुनेंगे-विचारेंगे और स्वीकार करेंगे कमनीय कल्पनापुर के पास सुधारकपुर नाम का एक गांव था। वहां नये सुधारकों के जैसे मतों के मानने वाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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