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नमूने ऐसे भी मिलते हैं जो तथागत बुद्ध के पूर्व के कहे जाते हैं। इन सब कारणों को लेकर शिल्पशास्त्री बहुत कुछ अंशों में इन्हें जैन शिल्पकला की ज्वलन्त सम्पत्ति कहने को प्रस्तुत हो रहे हैं, ये हैं जैन-शिल्पकला की ही सम्पत्ति । उदयगिरि, खण्डगिरि की गुफाओं का क्या महत्व किसी भार• तीय अन्य गुफाओं से शिल्पकला की दृष्टि से कमती है । दक्षिण देश में आई हुई बाहुबलजी की विशाल-काय ५७ फीट ऊँची एक ही पत्थर की बनी हुई मूर्ति भला किस शिल्पवेत्ता को आश्चर्य में नहीं डाल देती है। ऐसी एक मूर्ति ग्वालियर और वढवानी राज्य में भी है, जिन्हें देख कर आश्चर्य में रह जाना होता है। शत्रुजय, सम्मेतशिखर एवं आबू तीर्थों की मन्दिरों व ढूंकों की बनावट, सजावट देख कर यात्री जितने मुग्ध होते हैं, उतने अन्यत्र कहीं भी नहीं । यह सत्य है कि संसार में इस दृष्टि से इस प्रकार के बने हुए दृश्य अन्यत्र हैं ही नहीं, यह देख कर ही अनुभव किया जा सकता है। आबू का मन्दिर तो राजा कुमारपाल के समय में जो ११ वीं शताब्दि में हुआ, बना हुआ है। कितना सुन्दर, मनोरम एवं सराहनीय है। यह हम लिख नहीं सकते।
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